काश, आज की रात
तुम आ जाते सपनों में मेरे
तो मैं जी लेती मनमाफिक जिंदगी
कभी वसंती हवा बन इठलाती
तो कभी बरखा बन बरस जाती
सीने पर तुम्हारे
छोटे से उस पल को ऐसे जीती
मानों जी ली पूरी जिंदगी
गीत सुनाती तुम्हें प्रेम के
और कहानी मधुर मिलन के
करती सोलह श्रृंगार और
तुम्हें रिझाती बन कर रति
कभी सीने से लगकर तुम्हें
सुनाती पीड़ा अकेली रातों की
आखों से जो अश्रु बहता
वो साक्ष्य बनता मेरी तड़प का
सांसें मेरी कहती तुमसे
बांधकर रखना मेरा लक्ष्य नहीं
हां, मैं देना चाहती हूं तुम्हें
अधरों से अपने प्रेम निशानी
आज की रात जो तुम आ जाते...
तुम आ जाते सपनों में मेरे
तो मैं जी लेती मनमाफिक जिंदगी
कभी वसंती हवा बन इठलाती
तो कभी बरखा बन बरस जाती
सीने पर तुम्हारे
छोटे से उस पल को ऐसे जीती
मानों जी ली पूरी जिंदगी
गीत सुनाती तुम्हें प्रेम के
और कहानी मधुर मिलन के
करती सोलह श्रृंगार और
तुम्हें रिझाती बन कर रति
कभी सीने से लगकर तुम्हें
सुनाती पीड़ा अकेली रातों की
आखों से जो अश्रु बहता
वो साक्ष्य बनता मेरी तड़प का
सांसें मेरी कहती तुमसे
बांधकर रखना मेरा लक्ष्य नहीं
हां, मैं देना चाहती हूं तुम्हें
अधरों से अपने प्रेम निशानी
आज की रात जो तुम आ जाते...
रजनीश आनंद
16-03-17
16-03-17
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें