शनिवार, 4 मार्च 2017

मौसम हुआ रूमानी...

अचानक मौसम कुछ यूं हुआ रूमानी
जैसे कभी-कभी तुम हो जाते हो
ऐसे में बादलों को बरसता देख जी किया
मैं सिमट जाऊं आकर तुम्हारी बांहों में
अदेह स्वरूप में ही सही, मैं रहना चाहती हूं
गिरफ्त में तुम्हारी बांहों के हमेशा
तभी तो छतरी को खोल मैं निकल गयी थी सड़क पर
तुम्हारे साथ कुछ पल बिताने, कुछ देर जीने
छतरी के घेरे ने कराया तुम्हारे होने का एहसास
मैंने उसे ऐसे थामा जैसे थामना चाहती हूं तुम्हें
आज तुमसे बात करने की बहुत थी चाह
इसलिए मैंने खूब कही अपने मन की
जानते हो मैंने सवाल खुद किया और
तुम्हारी तरफ से जवाब भी दे दिया
ख्यालों में ही सही तुम सुनते रहे मुझे
यूं तो मैं जानती हूं अपने बारे में
हर छोटी-बड़ी बात लेकिन
जब तुम कहते हो उन्हें
अहसास कराते हो मुझे की मैंं खास हूं
तो सुकून मिलता है. जैसे अभी मिल रहा है
धरती से टकराती इन बारिश की बूंदों को देखकर
एहसास हो रहा है मानो मिल रहे हों हम-तुम...
रजनीश आनंद
04-03-17

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