हर रात जब
मैं अकेली होती हूं
लाख मना करती हूं
फिर भी दबे पांव
चली आती है तुम्हारी याद
मैं कहती हूं उससे
जाओ ना सताओ
जब प्रिये नहीं आते
तो तू क्यों चली आती है
मुझे मजबूर करने
आंखों में रात बिताने को
क्यों मुझे बेबस करती हो
लिखने के लिए एक कविता
दिल से मजबूर मैं
लिखना चाहती हूं मन की हर बात
हर तड़प, हर सिहरन
लेकिन जैसी ही मैं
कलम पकड़कर बैठती हूं
यादें, लिखकर बैठ जाती हैं नाम तुम्हारा
और मैं कागज पर अंकित उस
नाम को निहारती रह जाती हूं
दिल कहता है
इससे अच्छी कविता क्या होगी...
मैं अकेली होती हूं
लाख मना करती हूं
फिर भी दबे पांव
चली आती है तुम्हारी याद
मैं कहती हूं उससे
जाओ ना सताओ
जब प्रिये नहीं आते
तो तू क्यों चली आती है
मुझे मजबूर करने
आंखों में रात बिताने को
क्यों मुझे बेबस करती हो
लिखने के लिए एक कविता
दिल से मजबूर मैं
लिखना चाहती हूं मन की हर बात
हर तड़प, हर सिहरन
लेकिन जैसी ही मैं
कलम पकड़कर बैठती हूं
यादें, लिखकर बैठ जाती हैं नाम तुम्हारा
और मैं कागज पर अंकित उस
नाम को निहारती रह जाती हूं
दिल कहता है
इससे अच्छी कविता क्या होगी...
रजनीश आनंद
22-03-17
22-03-17
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