सोमवार, 20 जून 2016

राजनीति में महिला

ईश्वर ने या यू कहें कि प्रकृति ने जब स्त्री-पुरुष की रचना की तो दोनों को एक-दूसरे का पूरक बनाया. संभवत: पहले दोनों को एक ही बनाया होगा फिर दोनों को अलग-अलग स्वरूप प्रदान किया. दोनों इस कदर एक दूसरे से जुड़े हैं कि कोई काम एक दूसरे के बिना कर ही नहीं पाते.

‘हम बने तुम बने एक दूजे के लिए’ की स्थिति के बावजूद पता नहीं क्यों पुरुष को यह अहंकार घर कर गया है कि वह श्रेष्ठ है. अपनी शारीरिक बनावट का फायदा उठाते हुए उसने नारी को दबाना शुरू किया और वह श्रेष्ठ होता गया और नारी दोयम.

इस स्थिति के कारण ही पूरी दुनिया में नारी की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्थिति बिगड़ती गयी. पुरुष ने धर्म और राजनीति को अपनी गिरफ्त में कर लिया, चूंकि हमारी नीति और रीति दोनों इन्हीं पर आधारित है इसलिए पूरा समाज उसकी गिरफ्त में चला गया. नारी उसकी पूरक से मात्र संतति उत्पन्न करने का जरिया और भोग्या बनकर रह गयी.

बात अगर राजनीति की करें, तो नारी को राजनीति में जगह बनाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा है. पश्चिमी देश जो खुद को ज्यादा विकसित और आधुनिक बताते हैं उन्होंने भी महिलाओं को राजनीति में की- पोस्ट देने से परहेज किया. अमेरिका, फ्रांस, रूस जैसे देश में अभी तक कोई महिला की-पोस्ट पर नहीं बैठ पायी. हालांकि ब्रिटेन और जर्मनी में मार्गेट थैचर और एंजेला मार्केल को मौका मिला. इस बार अमेरिका में हिलेरी क्लिंटन राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की रेस में हैं और अगर वह राष्ट्रपति बनती हैं, तो यह इतिहास ही होगा, क्योंकि अमेरिका में अभी तक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बन पायी है.

जहां तक बात एशियाई देशों की है तो जिसे तीसरी दुनिया कहा जाता है वहां के लोगों ने ही महिलाओं को ज्यादा मौका दिया है. भारतीय राजनीति में सरोजनी नायडू, विजयालक्ष्मी पंडित, इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी, मायावती, जयललिता, ममता बनर्जी जैसी कई नेत्रियों को मौका दिया. पाकिस्तान जैसे देश में भी बेनजीर भुट्टो प्रधानमंत्री बनीं.  बांग्लादेश में भी शेख हसीना और खालिदा जिया का नाम सामने है. भारत में तो मध्ययुग में भी रजिया सुल्तान जैसी शासक हुई हैं, भले ही अल्प अवधि के लिए.

लेकिन अगर हम बात वर्तमान की करें, तो यह कहा जा सकता है कि एक आदमी भारतीय महिला चाहे वह कितनी भी प्रतिभावान क्यों ना हो, उसके लिए राजनीति में पैठ बनाना और की-पोस्ट तक पहुंचना आसान नहीं है. इसके लिए उसे परिवार और गॉड फादर की जरूरत होगी.

राजनीति में महिलाओं की उपस्थिति बढ़ाने के उद्देश्य से उनके लिए  33 प्रतिशत आरक्षण की मांग तो की जा रही है, लेकिन इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दल एक हैं और महिला आरक्षण विधेयक को पास नहीं करने को लेकर एकमत हैं. ऐसी स्थिति में आम भारतीय महिला के लिए राजनीति में पैठ बनाना मुश्किल सा है.
हालांकि पंचायतों में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है, लेकिन यहां भी मुखियापति जैसे पद महिलाओं की राह में बाधा ही बनते हैं.
रजनीश आनंद
20-06-16

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