मंगलवार, 21 जून 2016

...ताकि संपूर्ण हो हमारा प्रेम

ए सुनो ना प्रिये
क्या तुमने कभी घड़ी की सुइयों को ध्यान से देखा है
वे अनथक एक दूसरे के पीछे भागती हैं
मिलन की चाह में
भले ही उनकी मिलन बेला क्षणिक  होती हो
लेकिन उनका प्रेम देखो
मिलन की आस में बस चलना जानती हैं
एक दूसरे के स्पर्श की असीम चाह लिये
गौर से देखो इन्हें
एक है इनकी धुरी
भले ही साथ ना मिलता हो इन्हें हमेशा
लेकिन धुरी पर एक दूसरे को कसे रहती हैं
मानों जीवन की डोर बंधी हो
मेरा-तुम्हारा प्रेम भी तो कुछ ऐसा ही है
मिलन के अवसर कम हैं
लेकिन
हाय, हमारे प्रेम का उद्वेग देखो
मिलन की तड़प को महसूस करो
सुनो ना,जब एकाकार होंगे हम
तब कहना ना तुम इन घड़ी की सुइयों से
एक ही नाव पर सवार हैं हम
बख्श दो हमें थम जाओ कुछ पल
जी लेने दो, ताकि संपूर्ण हो हमारा प्रेम
चांद और चकोर की तरह नहीं
कमल और भौंरे की तरह ...
रजनीश आनंद
21-06-16

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