रविवार, 26 जून 2016

एक बार प्रिये जो आ जाते...


एक बार प्रिये जो आ जाते
दिन में चांदनी बिखर जाती
बन चकोर अपलक निहारती मैं
तनमन की पीड़ा कुछ बुझ जाती
एक बार प्रिये जो आ जाते...
मधुमास जीवन में आ जाता
बन चंचल हवा इतराती मैं
तुम संग रास रचा लेती
एक बार प्रिये जो आज जाते...
पलकों पर रूके अश्रु ढलक जाते
हृदय की पीड़ा कुछ क्षीण होती
कुछ तुम कहते, कुछ मैं कहती
एक बार प्रिये जो आ जाते...
कुछ हंसी ठिठोली हो जाती
जब तुमसे प्रेम पाने को मैं यूं ही तुमसे रूठ जाती
तब सीने से लगाकर तुम मुझको झट मना लेते
एक बार प्रिये जो आते...

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जब मैं तुम्हें देखती हूं ना प्रिये
तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे
तुम्हारे नख से शिख तक मैं ही मैं हूं
मुझे एहसास होता है तुम मेरे कान्हा
और मैं तुम्हारी मीरा हूं
जानते हो तुम्हारे सिर पर जो यह मोर मुकुट है
वो मेरे प्रेम का पहला चुंबन है
तुम्हारे गले में जो फूलों की माला है
वो तो मेरी बांहें हैं
जिसे प्यार से मैंने तुम्हारे गले में डाला है
 ये जो पीतांबर तुमने पहना है,दरअसल ये तो मैं हूं
जो पीले वस्त्रों में तुमसे लिपटी हूं
ये जो तुम्हारे पैर सिंदूरी नजर आते हैं, वो किसी श्रृंगार से नहीं
दरअसल वो मेरे मांग का सिंदूर है
जो प्रेम निवेदन के वक्त तुम्हारे पैरों को छू गया
मुझे तो तुम में सिर्फ मैं ही मैं नजर आती हूं
अब तुम ही बताओ ना क्या मैं भ्रम में हूं
या तुम सच में मुझे स्वीकारते हो
बोलो ना प्रिये, एक बार तो बोल दो...

रजनीश आनंद
27-06-16

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