बुधवार, 8 जून 2016

...क्योंकि नापाक नहीं है मेरा प्रेम

प्रेम कभी नापाक नहीं होता प्रिये
इसलिए बरस जाओ तुम सावन बनकर
प्यासी हूं मैं तुम्हारे प्रेम की
जन्मों से, अंतरघट तक
आओ प्रिये बांह थाम लो, गूंथ लो तुम मुझे बांहों में
ताकि शीतल हो जाये तनमन
मैंने प्रेम किया है, शर्म नहीं, गर्व है
किसी का हक ना छीना, ना शर्तों पर किया
हृदय में बस बसाया तुम्हें,
किसी को नहीं बताया मैंने
किसी से नहीं छुपाया मैंने
बस प्रेम किया, जो अब भी तुम कहो
नहीं है हमारा रिश्ता
तो छलक सकती है आंखें मेरी
लेकिन फिर भी होंठ मुस्कुरायेंगे
क्योंकि तुमने ‘कुछ’ तो कहा हमारे बारे में
उस ‘कुछ’ से ही सजा लूंगी मांग अपनी
क्योंकि नापाक नहीं है मेरा प्रेम....
रजनीश आनंद
09-06-16





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