शुक्रवार, 24 जून 2016

आओ ना प्रिये...

आह, वो तुम्हारी छुअन
एहसास मात्र से रोमांचित हो जाती हूं मैं
जैसे भौरें ने छू लिया हो पुष्प को
जैसे तपती धरती को बारिश की पहली फुहार ने
जैसे कोई पंछी पहली बार उड़ा हो आकाश में
अद्‌भुत हो तुम, तुम्हारी बातें
कैसे कहूं कितना प्रेम है तुमसे
क्योंकि मैं खुद भी तो नहीं जानती
बस प्रतीत होता है प्रेम का सागर हो तुम
और मैं एक नदी, जिसे तुमसे मिलने की है तड़प
प्रेम पूर्ण है मेरा अस्तित्व
आओ ना समेट लो मुझे अपनी बांहों में
रीत जाये यूं ही जिंदगी
ना रह जाये, मैं-तुम का एहसास
मै तुममें और तुम मुझसे जायें घुलमिल
तुम्हारी छुअन जब बन चुंबन उतरे मेरे अधरों पर
मौन बन जाये, हमारे लिए वरदान
उस एक पल में मैं जी लूं,पूरी जिंदगी
आओ ना प्रिये, अपनी छुअन से कर दो मुझे सराबोर
रजनीश आनंद
24-06-16

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