बुधवार, 15 जून 2016

मरीचिका नहीं है प्रेम

उसने कहा, मरीचिका है प्रेम
पास से देखोगी तो टूट जायेगा भ्रम
मैंने कहा, जीवन की आस है प्रेम
पास से देखूंगी तो भाग कर लिपट जाऊंगी, तर जाऊंगी
उसने कहा, नहीं है वो तुम्हारा
क्यों जता रही हो अपना हक
मैंने कहा, कहा है उसने मैं उसकी हूं
हक नहीं, प्रेम जता रही हूं
उसने कहा, छलावा है प्रेम
हासिल है बस क्षणिक सुख, शेष सब मिथ्या
मैंने कहा, मेरे लिए जीने का साधन और साध्य है प्रेम
क्षण भर जो पा जाऊं अपने प्रियतम के बांहों का घेरा, तनमन प्रफुल्लित होगा मेरा
जो अबतक मुझसे प्रेम पर था उलझा
उस चांद ने सुन मेरी यह बात भर लिया मुझे आगोश में
चूम कर मेरी पलकों को , कहा उसने, तू नहीं मानेगी
जो देखा मैंने उसके मुख की ओर
बढ़ गयी धड़कनें मेरी, क्योंकि मैं थी अपने प्रिये की बांहों में
एहसास हुआ वो श्याम मेरा मैं उसकी मीरा
मेरी नस-नस में दौड़ता है रक्त बन उसका प्रेम
हां मुझे है यकीन, जिस दिन मैं उसकी
बांहों में बेसुध रहूंगी और मौन प्रेम के बीच
गूंजेगी उसकी मोहक वाणी
उस दिन जीवन विष का प्याला नहीं
अमृत का प्याला होगा, उसके प्रेम से छलकता हुआ...
रजनीश आनंद
16-06-16  

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