मंगलवार, 21 जून 2016

आखिर इज्जत महिलाओं की ही क्यों जाती है, पुरुषों की क्यों नहीं जाती?

बलात्कार का अर्थ होता है बल पूर्वक किया गया कार्य. जिसमें हमेशा सहानुभूति पीड़ित के प्रति होती है. लेकिन समय के साथ ‘बलात्कार’ शब्द रूढ़ हो गया और इसका अर्थ अब सिर्फ एक महिेला के साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाना रह गया है. किसी महिला को बल पूर्वक हासिल करने और प्रेमपूर्वक हासिल करने में क्रिया भले ही एक होती हो, लेकिन दोनों में जमीन-आसमान का फर्क होता है और यह बात हर पुरुष को समझनी चाहिए. लेकिन अकसर यह देखा गया है कि एक आम पुरुष इस फर्क को समझ नहीं पाता. उसे तो दोनों बातें एक ही लगती हैं, जबकि सच्चाई इससे इतर है. मेरा ऐसा मानना है कि जबरदस्ती तो एक सेक्स वर्कर के साथ भी नहीं होनी चाहिए.

एक पुरुष जबरदस्ती के दर्द को इसलिए नहीं समझ पाता है क्योंकि उसके साथ अमूमन जबरदस्ती होती नहीं है. अगर एक बार वह जबरदस्ती के दर्द को झेल जाये, तो फिर वह किसी बलात्कार पीड़िता का मजाक उड़ाने से पहले सौ बार सोचेगा. निसंदेह बलात्कार एक गंभीर अपराध है, लेकिन आज भी हमारा समाज इसे अपराध की तरह नहीं लेता है. जब अखबार में बलात्कार की खबर छपती है तो लोग उसे दुख या सहानुभूति से नहीं पढ़ते, बल्कि उन्हें यह सनसनी लगती है और कई बार लोग इसे चटखारे लेकर भी पढ़ते हैं और पीड़ित महिला के प्रति उनमें कोई संवेदना नहीं जगती.

यह स्थिति तब तक नहीं बदलेगी जब तक बलात्कार को महिलाओं की इज्जत से जोड़कर देखा जायेगा. बलात्कार दरअसल एक अपराध है जिसमें महिला की कोई गलती नहीं होती, तो ऐसे में उसे महिला की इज्जत चली गयी और उसे अब जीने का कोई हक नहीं जैसे सोच को बदलना होगा. जिस दिन हम बलात्कार को एक सामान्य अपराध की तरह देखेंगे, महिलाओं के प्रति अपराध घटेगा. पुरुषवादी सोच के विस्तार के कारण हमारे समाज में लड़कियों को शुरू से यही सिखाया जाता है कि कुछ ऐसा ना करो कि बदनामी हो जाये. लेकिन लड़कों पर यह लगाम कभी नहीं कसी जाती.

पश्चिमी देशों में बलात्कार को महिलाओं की इज्जत से नहीं जोड़ा जाता और ना ही यह कहा जाता है कि अब उन्हें जीने का कोई हक नहीं है. इसलिए वहां पीड़ित महिला सामाजिक बहिष्कार का शिकार नहीं होती, लेकिन हमारे देश में तो महिला  को ही इस अपराध की जननी तक बता दिया जाता है. उसकी पहचान छुपाई जाती है. क्यों? क्योंकि उसकी इज्जत चली गयी है उसकी बदनामी होगी. अरे कोई उस मर्द से क्यों नहीं पूछता कि उसकी इज्जत इस अपराध के बाद बढ़ कैसे जाती है? ये तो वही हो गया कि करे कोई भरे कोई.अद्‌भुत है भारतीय समाज. इसके लिए पुरुष आगे नहीं आयेंगे. महिलाएं अपनी सोच बदलें. बलात्कार को अपने साथ हुए एक अपराध के तौर पर लें. इसके लिए उन्हें जान देने की जरूरत नहीं है, उनका ऐसा कुछ नहीं खोया है.
रजनीश आनंद
21-06-16


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