सोमवार, 6 जून 2016

फिर क्यों भर आती हैं आंखें मेरी?

आह, कितना सुख है, तुम्हारे आलिंगन में
जिस प्रेम की थी जन्मों से तलाश, अब जाकर पाया मैंने
जब झांकती हूं तुम्हारी आंखों में, तो प्रेम का उफान नजर आता है मुझे
तुम्हारा स्पर्श देता है अपनेपन का सुख
सीने में जब तुम्हारे छुपा लेती हूं मैं अपना चेहरा
प्रतीत होता है मानों दुनिया सिमट आयी मेरे इर्द-गिर्द
और तुम अपने प्रेम से सराबोर कर देते हो मुझे
फिर भी ना जानें क्यों बरस जाती हैं आंखें मेरी?
प्रेम का यह स्वरूप अब तक अनुभव से परे था मेरे
साकार किया तुमने उन ख्वाबों को जो दम तोड़ती सी दिख रही थीं
सोचती हूं कि कौन हो तुम?
मसीहा कहूं, तारणहार या फिर सखा तुम्हें
जिसने भर दिये मेरे जीवन में इंद्रधनुषी रंग
लेकिन जब भी देखती हूं, तुम्हारी मुख की ओर
तुम मुझे लगते हो इन सब से परे मेरे श्याम
जिसके लिए मेरे मन में है प्रेम बस प्रेम....!
 रजनीश आनंद
  06-06-16

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