मंगलवार, 13 सितंबर 2016

हरसिंगार के फूल

अहले सुबह अलसाई सी मैं
ज्यों खोला घर का मुख्यद्वार
हवा के तेज झोंके ने चूमकर मुझे
कर दिया ऊर्जा से स्फूर्त
इससे पहले की मैं कुछ समझ पाती
देखा आंगन में बिखरे हैं हरसिंगार के फूल
मानों नवब्याहता की सेज हो सजी
चहक कर मैंने उसकी डाल को कुछ और हिलाया
तो सज गयी मेरी मांग हरसिंगार से
ना जाने क्यों खुशी से चमक उठीं मेरी आंखें और
मैं बैठ गयी आंगन में जैसे मेरी ही वो सेज
उठाकर नजरें मैंने पूछा हरसिंगार से
तुम तो शिवशंकर पर ही सजते हो
आज क्यों सजा दिया मुझे?
मुस्कुरा कर कहा, उसने
जाओ देख तो आओ अपना मुखमंडल
जो लिखा है इसपर पढ़ सकता है उसे कोई भी
देख, अब तो काग भी दे रहा है संदेश
तू लाख छिपाये पर सबको पता है
आने वाला तेरा प्रिये...

रजनीश आनंद
13-09-16

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