शनिवार, 3 सितंबर 2016

तुम मेरे आराध्य

आज दूज की रात है
कहीं दिख जाये मेरा चांद
इस तसव्वुर में मैंने
आधी रात घर की छत पर बिता दिये
लेकिन जब नहीं दिखे तुम
तो सोचा आज हिज्र नहीं
भले ही सपनों में हो अभिसार
जब प्रेम को मिलेगी संपूर्णता
और मैं-तुम, हम होकर गढ़ेंगे
प्रेम के नये आयाम
जहां प्रेम होगा सर्वोपरि
और तुम मेरे आराध्य
रजनीश आनंद
03-09-16

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