हां मैं लिखती हूं
रोज एक खत तुम्हें
आंसुओं से नहीं सजाती
कभी शब्दों को, हां
उम्मीद बनते हैं शब्द
और वाक्यों में प्रेम का उपहार
जब खत पहुंचता है तुमतक
और हौले से मुस्कुरा कर
तुम खोलते हो उन्हें
तो लगता है जैसे
मैंने तुम्हें छूने का
सुख पा लिया
और इस सुख की चाह में
मैं हर रोज रात को
लिखती हूं एक
रजनीश आनंद
23-10-17
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें