शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

एहसासों की वो शाम...

तुम साथ नहीं आज
पर एहसासों की वो
शाम साथ है मेरे
जब मेरा सूखा मन
गीला हुआ था तुमसे
याद है वो रूमाल?
जिसमें पोंछा था हाथ
उसे यूं ही रखा है अबतक
तुम्हारी खुशबू के साथ
वो साड़ी भी सहेजा है
जिसके आंचल पर
जीवंत हैं अंगुलियां तुम्हारी
अपनी आंंखों में कैद किया
मुखड़ा तुम्हारा, ताकि
आंखों ही आंखों में दे दूं
बनावटी,प्रेमजड़ित उलाहना
तुम्हारी मुस्कान को होंठों से
सटाकर जज्ब किया है
अपने होंठों पर ताकि
वही, हां बिल्कुल वैसे ही
मुस्कान थिरके मेरे होठों पर
जानते हो तुम,यह तमाम
पूंजी हैं मेरी, और मैं सबसे
धनवान इस धरती पर...

रजनीश आनंद
21-10-17

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