रविवार, 8 अक्तूबर 2017

चुंबन का प्रति उत्तर

आकाश में जितने
तारे टिमटिमाते हैं
सब चुंबन हैं मेरे
जिन्हें उछाल फेंका है
मैंने तुम्हारे लिए
वो तुम तक पहुंचे या नहीं
यह सोच बेचैन होती हूं
रोती भी हूं घंटों
लेकिन सुबह जब
बागीचे की घास पर
बिखरी होती हैं ओस की बूंदें
तो लगता है जैसे
मिल गया हो चुंबन का प्रति उत्तर...

रजनीश आनंद
08-10-17

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