गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

जीवन पारदर्शी क्यों नहीं?

जब भी कांच के गिलास में
निर्मल-स्वच्छ पानी को देखती हूं
सोचती हूं जीवन ऐसा क्यों नहीं?
सब कुछ स्पष्ट, पारदर्शी, लुभावना
कि तड़प उठूं उस पानी के लिए
क्यों जीवन के गिलास में काई जमी है?
पानी में पनप चुके हैं कई जीवाणु
मेरा-तुम्हारा,अभिमान-स्वाभिमान की जंग में
जब फूट गया जीवन का गिलास
मैं चुपचाप समेटती रही, कांच के टुकड़ों को
इस उम्मीद के साथ कि अबकी जब
कांच पिघलेगा और बनेगा कोई नया गिलास
तो उसमें काई नहीं जमेगी
वह होगा साफ, स्वच्छ और पारदर्शी
क्योंकि जिंदगी की कलाई
मैंने अबतक बड़ी उम्मीद से थाम रखी है...

रजनीश आनंद
02-02-17

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