सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

साथ हो गंतव्य तक...

जिंदगी की गाड़ी चलती है
जंगल, पहाड़, खेत, नदियां
साथी मुसाफिर गुजरते हैं
कोई अपना सा लगता है
कोई हंसाता है, कोई रुलाता है
कोई छल करता है
कोई  विश्वास करना सिखाता है
लेकिन कोई ऐसा भी होता है
जिसके जाने से सीट खाली सी लगती है
भले ही वह स्टेशन पर
पानी की बोतलें लेने गया हो
लेकिन बेचैन होता है मन
कहता है, कहां रह गये तुम
गाड़ी चल पड़ेगी, नहीं पीना
पानी मुझे, बस तुम आ जाओ
तुम छूट गये, तो
नीरस, निरुद्देश्य
हो जायेगा सफर
तुम हो साथ, तो लंबा सफर थकाता नहीं
बैठे-बैठे अकड़ता नहीं बदन
तुम्हारे कांधे पर सिर रखकर
झपकी ले लेती हूं, तो मिट जाती है थकान
ठंड लगती है, तो तुम
ढंक देते हो चादर मुझे
जिसमें गरमाहट है तुम्हारे प्रेम की
और हां तुम्हारे साथ मूंगफली बहुत भाती है
तो आओ ना साथ जी लें यह सफर
जीवन के अंतिम स्टेशन पर
हम होंगे साथ गंतव्य तक...
रजनीश आनंद
14-02-17

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