जीवन में क्या मायने हैं उम्मीद के?
यह सवाल मेरे लिए बेमानी था तब तक,
जब तक की मैंने नहीं थामा था दामन इसका
पर ज्योंही मैंने उम्मीद को आगोश में लिया
वह धंस सा गया मेरे सीने में
मैं पिघलती गयी उसके सीने से लगकर
और वह मेरी कमजोरी बनता गया
जकड़ लिया बिलकुल उसने मुझे
फिर शातिर खिलाड़ी की तरह उसने कुतरे मेरे पर
मैं झटपटाई, लेकिन कुछ कर ना पायी
उम्मीद ने तो कैद कर लिया था मुझे पिंजरे में
सपने टूटे, वास्तविकता सामने थी मेरे
उम्मीद का चेहरा क्रूर होता जा रहा था
मैं डरने लगी थी उससे और उसका आगोश
चुभने लगा था मुझे, तब समझ पा रही थी मैं
उम्मीद के टूटने का दर्द, हां अब भी स्मरण है
जब पहली बार टूटी थी उम्मीद
प्रतीत हुआ था चांदनी रात में
छा गया हो अमावस जैसे
बहे थे इतने आंसू कि पोंछने की
इच्छा ना रही थी शेष, लेकिन
अब मैं समझ गयी हूं
उम्मीद है , तो सकारात्मक अनुभूति
किंतु जो इसका गुलाम हुआ इसने
दोजख से बदतर कर दी उसकी जिंदगी
इसलिए प्रण किया है मैंने
उम्मीद से प्रेम तो करूंगी, लेकिन
नहीं बनने दूंगी उसे मेरा भाग्यविधाता
क्योंक नकारात्मकता से मुझे चिढ़ है
जीवन सुंदर है इसे एक उम्मीद पर कुर्बान क्यों करना?
रजनीश आनंद
24-02-17
शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017
उम्मीद
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