बुधवार, 13 जुलाई 2016

हां मुझे एक मर्द ....

हां मुझे एक मर्द चाहिए. यह एक शाश्वत सत्य है. मैं एक औरत हूं तो निश्चततौर पर मुझे एक मर्द चाहिए. यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है. मेरे अंदर जो भावनाएं हैं उन्हें संपूर्ण एक पुरुष ही कर सकता है.  मैं जानती हूं कि मेरे इन चंद शब्द से ही कितने लोगों को परेशानी हो रही होगी, कुछ लोग मुझे चरित्रहीन का सर्टिफिकेट भी दे चुके होंगे. जी जरूर दीजिए किसी के प्रमाणपत्र दे देने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन यह एक सच्चाई है कि हर औरत को एक मर्द चाहिए होता है. लेकिन हमारे समाज की परिकल्पना कुछ इस तरह से की गयी है कि औरतें संकोचवश कुछ कहती नहीं और उसके इस संकोच को पुरुषवादी समाज अपने तरीके से लेता है और खुद को औरत का भाग्यविधाता मान बैठता है. औरतों को इस बात का हक ही नहीं है कि वे अपने बारे में कोई निर्णय लें.
प्रकृति ने स्त्री-पुरूष दोनों को गढ़ा, उसे एक दूसरे का पूरक बनाया. उनमें कई ऐसी भावनाएं दी जिसकी पूर्ति दोनों संग-संग करते हैं. विज्ञान भी इस बात को मानता है कि विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है. जब पुरुष और महिला एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं तो दोनों में  सेक्स हार्मोन  टेस्टोस्टेरोन और एस्ट्रोजन स्राव होता है. जब संबंध थोड़े मजबूत और दीर्घकालीन होते हैं तो  ऑक्सीटोसिन और वैसोप्रेसिन जैसे हार्मोंन उन्हें और भी नजदीक लाते हैं और दोनों एक दूसरे के साथ खुश रहते हैं. यह बताने का आशय सिर्फ यह है कि भावनाएं और प्रतिक्रिया दोनों में एक जैसी ही होती है.

ऐसे में यह कैसे सही माना जायेगा कि पुरुष अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति खुल्लम खुल्ला करे और औरत बेचारी सहमी-दबी भावनाओं को नियंत्रित करे और कुंठित हो जाये. अरे भाई जो आग एक पुरुष को जलाती है वह औरत को भी जलाती है. फिर यह भेदभाव क्यों? जब प्रकृति ने भावनाएं देने में कजूंसी नहीं की, तो समाज क्यों कर रहा है. लड़के अगर किसी लड़की को ‘मस्त’ कह दें, तो यह उनका अधिकार, सुनने वाले मुस्कुरा देंगे, लेकिन लड़कियां सलमान खान को भी ‘सेक्सी’ कह दें, तो छिछोरी हो जाती हैं.

मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि जीने का हक सबको है चाहे वह स्त्री हो या पुरुष. तो औरत को भी जीने दीजिए. वह जिसके साथ जीना चाहती है. कम से कम उसके शरीर के बारे में तो निर्णय एक पुरुष ना करे. वह खुद समर्थ है. वह जानती है कि उसे किसके साथ अपना शरीर शेयर करना है और किसके साथ नहीं. जबरदस्ती उसे पसंद नहीं, चाहे वह कोई भी करे. बलात्कार एक महिला के साथ जघन्य अपराध है जिसकी माफी नहीं. यह समाज समझे कि औरत पुरुषों से नफरत नहीं करती उसके लिए जीती है, उससे प्रेम करती है, लेकिन वह पुरुष कौन होगा, जिससे वह प्रेम करेगी यह हक तो एक औरत को होना है, कोई दूसरा यह निर्णय क्योंकर करेगा?

रजनीश आनंद
13-07-16

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