बुधवार, 20 जुलाई 2016

दिमाग के फितूर का परिणाम है बलात्कार

पुरुषों के दिमाग में व्याप्त फितूर के कारण हमारे समाज में बलात्कार की इतनी घटनाएं होती हैं.  प्राचीन काल से हमारे देश में बलात्कार की घटनाएं होती रहीं हैं, अब तो यह इतनी आम हो गयी है कि हम इसके आदी हो चुके हैं, तभी तो इस अपराध की घटना को हम पढ़ कर यूं भूल जाते हैं, जैसे यह कोई रूटीन खबर हो. कई घटनाएं तो इसलिए सामने नहीं आतीं कि इससे लड़की की बदनामी होती है. मीडिया में लड़की का नाम नहीं छपा जाता और हम इसे बड़े शान से बताते हैं कि लड़की का नाम बदल दिया गया है. वाह रे समाज. जो पीड़ित है बदनामी उसी की होती है? यह तो बात हमारे देश की है, लेकिन विदेशों में भी बलात्कार की घटनाएं आम हैं.

बलात्कार को दिमागी फितूर इसलिए कह रही हूं क्योंकि तमाम कठोर कानून के बावजूद इस अपराध पर लगाम नहीं कस रही है. आदिकाल से हमारे देश में बलात्कार होते आये हैं. पौराणिक कथाओं में भी बलात्कार का जिक्र है. गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के साथ देवराज इंद्र ने बलात्कार किया था. इसके अलावा भी कई उदाहरण मौजूद हैं. मध्ययुग में तो बलात्कार आम था. हालांकि अब जबकि संविधान ने महिलाओं को समान नागरिक अधिकार दिये हैं और बलात्कार के विरूद्ध कई कड़े कानून भी बनाये हैं, यह अपराध बदस्तूर जारी है, ऐसा क्यों यह सवाल लाजिमी है?

रोहतक में बलात्कार पीड़ित लड़की के साथ जो कुछ हुआ, उसे क्या कहा जाये. एक महिला होने के नाते मुझे जो समझ आता है उसके आधार पर यह कह सकती हूं कि ऐसे पुरुषों  (जो बलात्कार जैसे अपराध करते हैं) के लिए महिलाएं बस शरीर हैं, जिसे जरिये वे सिर्फ अपनी हवस की पूर्ति कर करते हैं. उनके कृत्य से एक महिला को क्या महसूस होता है इस बात से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता. महिला की सहमति-असहमति से उन्हें कोई लेना-देना नहीं होता.

कई बार यह भी देखा जाता है कि किसी महिला को सबक सिखाने या उसके परिवार से दुश्मनी होने पर भी बलात्कार जैसे कृत्य को अंजाम दिया जाता है. खासकर ग्रामीण इलाकों में तो जमीन -जायदाद के मामलों में भी महिला के साथ बलात्कार कर लोग खुद को जीता हुआ महसूस करते हैं. दांपत्य जीवन में भी बलात्कार की घटनाएं होती हैं, जिसे औरतें अपनी नियति मान बैठती हैं और पुरुष अपना हक.

कुछ लोग तो दिमागी रूप से बीमार होते हैं और जहां भी अकेली महिला को पाते हैं अपनी यौन इच्छा को शांत करने लगते हैं. ऐसे लोग तो एक चार साल की बच्ची और 40 साल की औरत का फर्क भी नहीं समझते. ऐसे ही लोग हर सीमा को पार कर जाते हैं और अपने अपराध को जघन्य बना देते हैं. कई बार ऐसी खबरें आतीं हैं जिनकी चर्चा एक औरत होने के नाते करते हुए सिहर जाती हूं. मसलन प्राइवेट पार्ट को क्षतिग्रस्त करना. अंदर कांच के टुकड़े डाल देना. कंकड़-पत्थर डालना. और भी कई बातें हैं जिन्हें लिखने में रूह कांप जाती है. हालांकि जो लोग खबरों से रूबरू रहते हैं उन्हें भली-भांति पता है कि और किस-किस तरह पाश्विक व्यवहार क्या जाता है.

वह भी तब जबकि इस अपराध के खिलाफ ‘रेयर आफ रेयरेस्ट’ मामला होने पर मृत्युदंड तक का प्रमाण है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि प्रतिवर्ष हमारे देश में लगभग 30 हजार बलात्कार की घटनाएं होतीं हैं, जो कि दर्ज की जाती हैं. इसके अलावा हजारों घटनाएं ऐसी होतीं हैं, जो दर्ज नहीं की जातीं. इस परिस्थिति में बलात्कार कभी रूकेगा यह संभव प्रतीत नहीं होता है, जबतक कि लोग महिलाओं के प्रति अपना सोच नहीं बदलेंगे.

रजनीश आनंद
20-7-16

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