गुरुवार, 21 जुलाई 2016

ओ काले मेघ सुन लो मेरी बात...

ओ काले मेघ, तुम तो मेरे बालपन के सखा हो
क्या मेरा एक काम करोगे
तुम्हें हमारी दोस्ती का वास्ता
उस किश्ती का वास्ता जिसे
तुम्हारे बरसने पर मैं चलाया करती थी
तुम्हें तो उससे बहुत प्रेम था
तभी तो तेज बरस कर तुम उसे ले जाते थे अपने साथ
तुमने तो कइयों के संदेश पहुंचाये हैं
तो क्या मेरी पीड़ा को तुम नहीं समझोगे
तुम पर तो कोई बंदिश भीनहीं कहीं भी आ- जा सकते हो
तो जाओ ना मेरे प्रियतम के गांव
 जाकर कहना उससे अब सही नहीं जाती विरह की पीड़ा
वो एक बार तो आ जाये और सजा ले मुझे अपनी बांहों में
फिर तो मन में उसकी मूरत और तन में उसके स्पर्श का एहसास
काफी है पूरी जिंदगी गुजारने के लिए
जानते हो काले मेघ, मैंने इन हवाओं से भी कहा था
मेरा संदेश मेरे प्रिये तक पहुंचा दो
लेकिन इसने पहुंचाया नहीं, इसे ईर्ष्या होती है मुझसे
इसे मिला नहीं ना कोई मेरे प्रिये सा प्रेम करने वाला
लेकिन तुम तो मेरे सखा हो, मेरा ये काम कर दो
ना-ना मेरी पीड़ा पर यहां ना आंसू बहाना
थाम लो अपने आंसुओं को, यहां मत बरसाओ इन्हें
जाओ जाकर मेरे प्रिये पर बरसना
उन्हें इन आंसुओं से कर देना तर-बतर
ताकि मेरी पीड़ा महसूस हो उन्हें और
कम से कम एक बार तो आ जाये वो
उस दिन तुम मेरे आंगन में बरसाना, खुशी के आंसू
ताकि भींग जायें  हम प्रेम की बरसात में
ओ काले मेघ...

रजनीश आनंद
22-07-16

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