गुरुवार, 21 जुलाई 2016

इंतजार में तुम्हारे मैं हर रात जागूंगी...

इंतजार में तुम्हारे मैं हर रात जागूंगी
तुम आओ न आओ, राह तकना नहीं छोड़ूंगी
खुद को तुम्हारे लिए संवार कर टकटकी लगाये
रात के सन्नाटे में दरवाजे पर बैठी हूं मैं
कहीं भूले से दस्तक दे दो दरवाजे पर तुम
इस डर से की कहीं सुन ना पाऊं तुम्हारी दस्तक
मैंने दरवाजा भी बंद नहीं किया है
सामने चांद मुस्कुरा रहा है, लेकिन उसकी चांदनी
जरा भी नहीं भा रही मुझे, वो तो तब सुंदर होगी जब तुम आओगे
जब-जब बोझिल होती हैं आंखें मेरी
भान होता है जैसे, तुमने लगायी हो आवाज
देखो प्रिये मैं आ गया और यह आवाज
मुझे भर देती है नयी ऊर्जा से
और मैं फिर करने लगती हूं तुम्हारा इंतजार
जी चाहता है, तुम एक बार आ जाओ
और भर लो मुझे अपनी बांहों में
लेकिन शायद इंतजार ही मेरी नियति है
आज समझ पायी हूं मैं मीरा के प्रेम को, उसके दर्द को
कसम है मुझे, जो राह तकने में कोई भी कोताही करूं
तुम आओ ना आओ प्रिये, मैं इंतजार करना नहीं छोडूंगी
क्योंकि अद्‌भुत है इंतजार का सुख और मैं जी रही हूं इसे...
रजनीश आनंद
21-07-16

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