गुरुवार, 28 जुलाई 2016

बादलों में छिपा चांद...

बादलों में छिपा चांद, मुझे बहुत भाता है
उसका सौंदर्य कुछ देर के लिए
बादलों की ओट में छिप भले ही जाता हो, लेकिन
पुन: उससे रूबरू होने की व्यग्रता
मुझे इंतजार के लिए प्रेरित करती है
अभी बादल छंटेंगे और
नजर आयेगा चांद, उसकी मनोहारी छवि
अहा, इंतजार में यह उम्मीद
मन को कितना सुकून देती है
तुम क्या जानो प्रिये
मैंने तो तुम्हारे इंतजार में
उम्मीद के इसी दीये को रौशन कर रखा है
तमाम आंधी तूफान से
इस दीये को छिपाती फिरती हूं
क्योंकि इसी उम्मीद में है मेरी प्राणवायु
सो इस उम्मीद को ना तोड़ना तुम
एक बारी ही सही, आ जाना तुम

रजनीश आनंद
28-07-16

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