सोमवार, 18 जुलाई 2016

...थोड़ा और इंतजार

पता नहीं क्यों आज, रेत के टीले पर बैठ
मैं लगी थी बनाने एक घरौंदा
एक उम्मीद सी जागी थी
मानस पटल पर उभरी थी
वही मनमोहिनी आकृति
जिसकी वाणी जादुई, आंखें शरारती थीं
लगा था बाहों में सजकर कहूं
आ गये तुम, देखो बनाया है
मैंने हमारे लिए एक घरौंदा
बस एक कमी है, तुम आकर सजा दो इसमें पुटुस के फूल
फूलों से रंगीन ख्वाब को सच कर दो
जिन्हें सजाकर रखा है मैंने अपनी आंखों में
आकर रख दो मेरे सीने पर पर अपना हाथ
ताकि इस धड़कते दिल को भी
मिल जाये थोड़ा सुकून
और यह बेसब्र ना हो कर ले
थोड़ा और इंतजार और इंतजार...
रजनीश आनंद
18-07-16

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