शुक्रवार, 8 जुलाई 2016

क्या प्रेम महज ‘इंटरटेनमेंट’ का साधन है?

क्या प्रेम महज ‘इंटरटेनमेंट’ का साधन है? यह सवाल मुझे कल से परेशान कर रहा है. कारण यह है कि मुझे प्रेम पर बड़ा यकीन है लेकिन मेरे एक अनुज ने यह कह दिया कि यह महज एक इंटरटेनमेंट का साधन है. हालांकि उसने जो सवाल उठाये, वह तथ्यात्मक थे और उनसे इनकार नहीं किया जा सकता.
मेरा यह मानना है कि प्रेम एक अद्‌भुत अनुभूति है, जिसे इंसान के साथ-साथ जानवर भी समझते और महसूस करते हैं. मैंने तो इसे अपने जीवन में महसूस किया है और निश्चित तौर पर आपने भी अपने जीवन में महसूस किया होगा. प्रेम कई रिश्तों में होता है और उन सब की अपनी अहमियत है, लेकिन यहां चर्चा सिर्फ एक स्त्री और पुरुष के संबंधों की हो रही है. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है और वो होता भी है. खास आयुवर्ग में यह आकर्षण ज्यादा होता है और टीनएजर्स किसी भी खूबसूरत चेहरे पर मर मिटते हैं, यह बात दीगर है कि खूबसूरती का पैमाना सबके लिए अलग होता है और कौन किसे भायेगा, यह हर व्यक्ति के पसंद पर निर्भर करता है. लेकिन क्या किसी का चेहरा भर अच्छा लगना प्रेम की निशानी है? आखिर प्रेम है क्या? अपनी राय में कहूं, तो प्रेम आपको तब होता है जब आपको कोई बहुत खास लगता है. उसका साथ, उसकी बातें और संभवत: उसका व्यक्तित्व आपको खुशी देता है. जब आपको किसी के साथ से खुशी मिले तो निश्चत तौर पर यह प्रेम है. प्रेम के रिश्ते में एक-दूसरे के लिए सम्मान का होना भी बहुत जरूरी है. अगर एक व्यक्ति किसी का सम्मान करे और दूसरा उसका अपमान करे, तो प्रेम ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाता है. भले ही अगर आप रिश्तों की डोर में बंधें हैं, तो वह रिश्ता रह जाये, लेकिन प्रेम तो नहीं रहेगा, इसका मुझे यकीन है.

प्रेम नहीं है इंटरटेनमेंट का साधन
आज के दौर में अगर प्रेम का वर्गीकरण किया जाये, तो हम पायेंगे कि यह तीन तरह का हो गया है-1. प्रेम 2. आकर्षण 3. इंटरटेनमेंट. प्रेम में उस तरह के संबंध हैं जो सही में एक दूसरे से प्रेम करते हैं और एक दूसरे के साथ जीना चाहते हैं. यह बात अलग है कि इनमें से कितने सामाजिक रिश्तों में बंध पाते हैं और कितने नहीं. लेकिन अगर दो लोग जिनमें प्रेम है वो सामाजिक रिश्तों में ना बंध पायें तो उनका प्रेम नापाक  नहीं हो जाता है. मैं यह मानती हूं कि प्रेम ऐसे सामाजिक रिश्तों का मोहताज नहीं वह तो हमेशा कायम रहता है और पवित्र होता है. दूसरे कैटेगरी में आता है आकर्षण. ऐसा संभव है कि आप किसी व्यक्ति के प्रति आकर्षित हो जायें, उसकी कोई बात कोई अदा आपको भाती हो. लेकिन यह प्रेम नहीं है. कोई व्यक्ति किसी खिलाड़ी, किसी होरो-हीरोइन और किसी राजनेता के प्रति भी आकर्षित होता है, तो क्या उसे प्रेम कहा जा सकता है. प्रेम में इंसान दूसरे इंसान की कमियों के साथ उसे स्वीकार करता है, लेकिन यह बात आकर्षण में लागू नहीं होती. तीसरी कैटेगरी है इंटरटेनमेंट की जो बहुत ही खतरनाक है. कई बार ऐसा होता है कि कोई लड़का या लड़की महज मजा मस्ती के लिए किसी के साथ संबंध बनाते हैं और अगले को ऐसा महसूस करवाते हैं कि वह उसके लिए खास है और वह उसे प्रेम करता है, जबकि वास्तविकता में ऐसा होता नहीं है. ऐसे में अगर दोनों व्यक्ति का एक जैसा नजरिया हो, तब तो किसी हद तक यह ठीक भी है, लेकिन अगर एक इंटरटेनमेंट कर रहा हो और दूसरा रिश्ते के प्रति गंभीर हो, तो स्थिति बहुत खराब हो जाती है. ऐसे रिश्ते को प्रेम की संज्ञा देना मेरी समझ से बहुत ही गलत है.

लड़कियां जरूरत के लिए लड़कों से करती हैं प्रेम का नाटक
आधुनिक समाज में एक बड़ा परिवर्तन यह देखने को मिल रहा है कि अब लड़कियों के भी कई प्रेमी होते हैं, आज से महज 10-15 साल पहले तक एक टाइम में एक लड़के की तो कई प्रेमिकाएं होती थीं, लेकिन लड़कियां इस ट्रेंड में शामिल नहीं थीं. मैं ट्रेंड का विरोध भी नहीं कर रही, क्योंकि किसी के निजी फैसले पर बोलने का मैं हक नहीं रखती. वैसे भी जब लड़के एक साथ पांच लड़कियों से प्रेम करके पाक-साफ रह सकते हैं तो लड़कियां क्यों नहीं? यहां सवाल यह है कि क्या आप जिनके साथ प्रेम में हैं, उन पांचों के साथ आप प्रेम कर रहे हैं या फिर इंटरटेनमेंट? आज के लड़कों का लड़कियों पर यह आरोप है कि वे मतलब के लिए प्रेम करती हैं और मतलब निकल जाने पर ऐसे बिहेव करती हैं जैसे उनके बीच कभी प्रेम जैसा कुछ था ही नहीं, लड़के ने गलत समझा. अपने इस आरोप के पक्ष में वे तर्क देते हैं कि लड़कियों को अपना काम करवाने के लिए, मसलन फीस जमा करने, नोट्‌स लाने, फॉर्म जमा करने, मोबाइल रिचार्ज कराने, बाइक पर घूमाने के लिए लड़कों की जरूरत होती है और वे इसके लिए एक लड़के से दोस्ती करती हैं. मैंने इस आरोप की सच्चाई को परखने की कोशिश की और पाया कि यह आरोप सौ प्रतिशत भले ही सच ना हो, लेकिन सच है.

ब्रेकअप होने पर लड़कों को भी होता है दुख
अक्सर यह माना जाता है कि लड़के दिलफेंक होते हैं और वे ‘तू नहीं कोई और सही’ के सिद्धांत पर चलते हुए हर लड़की को ‘ट्राई’ करते हैं. तो क्या लड़के सही मायनों में किसी से प्रेम नहीं करते? नहीं यह बात मुझे तो सही नहीं लगती. अगर ऐसा होता तो इतनी प्रेम कहानियां हमारे सामने नहीं होतीं. हां यह बात जरूर है कि लड़के संबंध टूटने पर उतने उदास नहीं होते, जितनी लड़कियां होती हैं. वे दर्द को इस तर्ज पर झेल लेते हैं कि -मर्द को दर्द नहीं होता. लेकिन सच्चाई यह है कि दर्द उन्हें भी होता है और जब उनका प्यार उनसे दूर होता है तो रोना उन्हें भी आता है. आंसू उनके भी टपकते हैं.

रजनीश आनंद
08-07-16


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