सोमवार, 11 जुलाई 2016

पावस ऋतु और तुम

पावस ऋतु हमेशा जलाती होगी
लेकिन इस बार तो
उम्मीद कि डोर मैंने थाम रखी है
जब भी आकाश में मेघ उमड़ते हैं
प्रतीत होता है तुम आसपास कहीं हो
अपने प्रेम की वर्षा कर तनमन शीतल कर दोगे
देखो ना,  बिजली भी चहक कर तुम्हारे आने का संदेश देती है
इस सावन जब बांहों में भरोगे तुम
बूंदें बादलों से  नहीं, मेरी आंखों से बरसेंगे
ए सुनो ना प्रिये
मेरे आंसुओं को तुम
बन धरती खुद में समेट लेना
क्योंकि वो आंसू नहीं प्रेम है मेरा
तुम्हारे लिये तड़प का प्रमाण है
जब कई रातें मैंने तुम्हारे इंतजार में काट दी
पलकें नहीं भींगने दी, क्योंकि तुम पास नहीं थे
लेकिन अब एक आस है
तभी तो जब-जब आकाश में काले बादल छाते हैं
मैं भागकर छत पर जाती हूं
काले बादलों को निहारती हूं
प्रतीत होता है प्रिय जैसे
अभी, बस अभी बूंद बन
तुम कर लोगे मेरा स्पर्श...

रजनीश आनंद
12-07-16

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