शनिवार, 30 जुलाई 2016

संबोधन वो, जिसमें लिपटा हो प्रेम...

सोचती हूं क्या कहकर पुकारूं तुम्हें
जिंदगी,जुस्तजू या जान कहूं
या फिर
प्रिये, प्रियतम या दिलबर कहूं
संबोधन वो, जिसमें लिपटा हो प्रेम मेरा
यूं तो शब्दकोश में हैं कई शब्द
लेकिन, प्रतीत होते हैं सब अपूर्ण
परिभाषित नहीं करता कोई
तुम्हारे प्रति मेरा अथाह प्रेम
संभव है मैं व्यक्त नहीं कर पाती
खुद को लेकिन,
ए सुनो ना तुम
जब भी मेरे मुख से निकले
कोई प्रेमपूर्ण शब्द
समझ लेना मैंने पुकारा है तुम्हें
इतना तो समझते हो ना तुम मुझे?

रजनीश आनंद
30-07-16


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