बुधवार, 6 जुलाई 2016

इस स्याह रात में...

इस स्याह रात में अकेली बैठ
मैं करती हूं किसका इंतजार
जबकि घर के दरवाजे की कुंड़ी को
मैंने खुद ही किया है बंद
जानती हूं कोई नहीं है आनेवाला
फिर क्यों रह-रह कर होती है
 किसी के आने की आहट
कोई और ना सुन पाये शायद
लेकिन मैंने तो सुनी है
तुम्हारी खनकती हंसी
वो तुम्हारा मादक स्पर्श
इस स्याह रात को बनाता है
और भी मादक
करती हूं कोशिश तुम्हें ढूंढने की
फिर खुद पर ही हंस पड़ती हूं मैं
कितनी नासमझ हूं
किसे तलाश रही हूं, जो मुझमें है समाया
जरूरत है तो बस उसे महसूस करने की
इस स्याह रात में ....

रजनीश आनंद
06-07-16

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