मंगलवार, 4 अक्तूबर 2016

क्योंकि मुझे भाती है यह मूढ़ता..

हां मैं मूढ़- अज्ञानी
नहीं समझ सकती
तुम्हारी ज्ञान की बातें
पर क्या करूं जो मुझे
भाती है यह मूढ़ता
जिस प्रकार एक भौंरा
गंवा अपनी आजादी
कैद हो जाना चाहता है
कमल के आगोश में
उसी तरह मैं भी
कैद होना चाहती हूं
तुम्हारी बांहों में ताकि
जब नजदीक से मैं झांकूं
तुम्हारी आंखों में तो
मैं ही मैं नजर आऊं
मैंने पढ़ लिया है उस चेहरे को
जिसे पढ़ना था मुझे
बस, अब कोई और भाता नहीं
सुनो प्रिये मेरे मन की बात
जो तुम ना समझोगे
तो कौन समझेगा
मैंने प्रेम किया है तुमसे
जो ना दे सको प्रेम
तो कोई बात नहीं
पर ये ना कहना दुबारा
कि
पढ़ लो कोई और चेहरा...

रजनीश आनंद
04-10-16

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