बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

...क्योंकि निरर्थक है किसी से तुम्हारी तुलना

आज मन में उठा यह सवाल तुम मुझे
कितना और किसकी तरह प्रिय हो?
देखा जो चांद को, फीका लगा वो
तुम्हारे सामने, मैंने कहा उससे
नहीं, तुममें नहीं वो बात
जो है मेरे प्रिये में
चांद गुर्राया, कहा
ऐसी क्या बात है उसमें
जो मुझमें नहीं
उसकी नजरों का जादू
नहीं है तुम्हारे पास
तभी मेरी नजर गयी
 नीले विस्तृत आकाश की ओर
सुंदर, अति सुंदर, किंतु
इस विस्तृत आकाश में वो बात नहीं
वो विस्तार नहीं, जो मेरे प्रिये के प्रेम में है
तभी आकाश में छाये काले बादल ने
मुस्कुरा कर कहा, मेरे बारे में
 क्या है तुम्हारी राय?
मैंने कहा, मोहक, मादक
किंतु, मेरे प्रिये की मोहकता और मादकता
तो अद्‌भुत है, तुम में वो बात नहीं
जब देखती हूं उसे तो नेत्र थकते नहीं
भान होता है, अभी तो कुछ देखा नहीं
नशा तो उसके प्रेम में इतना है
कि
बिना स्पर्श के भी मुझे कर देता है मदहोश
महसूस होती है उसकी उपस्थिति
तभी एहसास हुआ निरर्थक है किसी से तुम्हारी तुलना
क्योंकि कोई मुझे तुम सा लगता नहीं
कितना है प्रेम तुमसे प्रिये
ये तो नहीं ज्ञात मुझे
लेकिन मेरी हर सांस पर अंकित है तुम्हारी छाप
अनमोल हो तुम मेरे लिए,
 जिसकी जगह कोई नहीं ले सकता मेरे जीवन में
क्योंकि मुझे है तुमसे असीम और अथाह प्रेम
रजनीश आनंद
12-10-16

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