सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

छोड़ी हुई औरत...

छोड़ी हुई हमेशा
औरत ही क्यों होती?
मर्द क्यों नहीं होता?
क्यों हमेशा यह त्रासदी
औरत के हिस्से रही
दुष्कर्म तो इंद्र ने किया
लेकिन सजा अहिल्या को मिली
परित्यक्ता! सीता क्यों
यह सवाल बेचैन करते हैं मुझे
हां  छोड़ी हुई औरत हूं मैं
लेकिन इसमें मेरा दोष क्या?
मैंने तो हर कोशिश की
तुम्हें खुश रखने की
एक आदर्श पत्नी बनने की
इच्छा-अनिच्छा जताये बिना
बिछी तुम्हारे बिस्तर पर
जो चाहा तुमने वो दिया
फिर भी मुझपर लगा
एक छोड़ी हुई औरत का ठप्पा
खुद पर यह मुहर
ना लगने देने के लिए
कितना तड़पी मैं
कितनी मिन्नतें की
लेकिन तुमने क्या किया
मुझे बना दिया
एक छोड़ी हुई औरत
जो सहज उपलब्ध मानी जाती है सबके लिए
क्या रिश्ते प्रेमवश बनते हैं
मैंने तो इसे स्वार्थवश बनते देखा
फिर भी थामे रखा
रिश्ते की उस डोर को
जो बेमानी थे तुम्हारे लिए
इसलिए नहीं कि रिश्तों में
गरमाहट शेष थी, बल्कि
इसलिए कि कही ना जाऊं
एक छोड़ी हुई औरत
लेकिन कम ना हुआ
तुम्हारा पुरूष दंभ
दंभी पुरूष से यह जवाब चाहती है
एक छोड़ी हुई औरत
कि
जब छोड़ दिया मुझे
तो अधिकार क्यों जताते हो
मैं जागीर नहीं तुम्हारी
एक इंसान हूं
और जानती हूं कि
छोड़ी हुई मैं हूं
लेकिन अभागी मैं नहीं
तुम हो, जिसने समझा नहीं मेरे प्रेम को...
रजनीश आनंद
17-10-16

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