सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

सच कर दो मेरा ये सपना...

आधी रात को अचानक
कोई  चूमकर मस्तक
जगा देता है मुझे
अंधेरे में चेहरा तो नहीं देख पाती मै
लेकिन प्रतीत होता है
मानो तुम आसपास हो
जानती हूं मैं यह भ्रम है
किंतु करूं क्या मैं
ये तो बता दो?
क्या कर दिया तुमने मुझे?
ज्ञात नहीं, बस इतना मालूम है
कि
अब खुद पर बस नहीं रहा
सीने में एक हूक सी उठती है
चाह होती है थाम कर तुम्हें
जी भर कर रो लूं
खुश हूं मैं, तुम्हारे होने का अहसास है
देखो ना तुम तो नहीं यह अंधेरा ही मुझे
जकड़ लेना चाहता है
अपने बाहुपाश में
और कसती जाती है पकड़
अंकित कर देता है ये
मुझपर तुम्हारे निशान
इस प्रेम आबद्ध के साथ
मैं जीना चाहती हूं
वो सब पाना चाहती हूं
जिसका किया है तुमने वादा
सही है कि तुम्हारे बांहों का घेरा आभासी है
लेकिन इतना सुकून देता है
कि तुम्हारी हो गयी हूं मैं
और इस हक से अनुरोध है तुमसे
कि
सच कर दो ना मेरा ये सपना....

रजनीश आनंद
17-10-16




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें