मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

संजीवनी बूटी

क्या मैं बेसब्र हूं प्रिये?
सच बताना, संकोच ना करना
वैसे तुमसे एक मन की बात कहूं?
मुझे ऐसा प्रतीत होता है
कि मैं बेसब्र हूं
जब तुम नहीं बोलते ना मुझसे
और मैं निराश हो जाती हूं
कभी-कभी छलक जाते हैं नयन
और कभी तो क्रोध आ जाता है
कभी सोचती हूं, रूठ जाऊं
ना करूं तुमसे कोई बात
यह संकल्प कर ज्योंही बैठती हूं
तुम सामने आते हो और
कहते हो क्या नहीं बोलोगी मुझसे
बस, टूट जाती सारी प्रतिज्ञा
और मैं फिर करने लगती हूं बकबक
क्या करूं मैं, जो मन मानता नहीं
तभी ध्यान आता है मुझे मीरा का
कितना धैर्य था उस स्त्री में
जिसने आजीवन बुतपरस्ती की
सोचो तो, क्या उसका श्याम
उससे नहीं बोलता होगा?
मुझे तो पूरा यकीन है
वो बोलता होगा, यह बात दीगर है
कि सुना सिर्फ मीरा ने
वैसे जरूरत भी क्या थी
किसी और को सुनने की
मैं भी तो तुम्हारी मीरा हूं
मेरा भी मन करता है
कि मैं करूं तुम्हारा श्रृंगार
तुम्हारे लिए  बनाऊं पकवान
और जब तुम खाओ
तो तुम्हें निहारती रहूं, बड़ा सुख मिलेगा
ए सुनो ना एक बार
चाहे तो ना देना जवाब
पर मैं कहना चाहती हूं
बस एक बार कह दो ना
तुम्हें मुझसे है प्रेम
क्योंकि यही एक शब्द है
जो संजीवनी बूटी है, मेरे जीवन की
रजनीश आनंद
26-10-16

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