गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

बिना प्रेम समर्पण कैसा?

मैं एक औरत हूं,कठपुतली नहीं
भावनाओं-संवेदनाओं से परिपूर्ण
जिंदगी की जीने की चाह भी है भरपूर
गलत को गलत और सही को सही
कहने का माद्दा भी रखती हूं
फिर क्यों लोग, मुझे बेबस मानते हैं
इज्जत का जामा मुझे पहना
त्याग बलिदान की उम्मीद करते हैं
हमेशा मैं ही क्यों त्याग करूं
मुझे नहीं कहलाना है, सीता-सावित्री
ना अहिल्या ना तुलसी
हर बार छली जाती हूं मैं
नहीं चाहती कोई आदर्श स्थापित करना
अगर अपनी खुशियों को तलाश जीना
चारित्रिक दोष है, तो ठीक है
मैं चरित्रहीन ही सही
पर जीने तो दो मुझे
मैं किसी का अहित नहीं चाहती
ना मांग रही कोई राज्य सिंहासन
बस जीना चाहती हूं,अपनी मरजी से
मैं क्यों करूं अपना शरीर उसे समर्पित
जिससे मुझे नहीं है प्रेम
मेरे शरीर पर तो मेरा अधिकार रहने दो
अगर मैं इतनी बदनसीब हूं
कि
नहीं मिलेगा मुझे कोई प्रेम करने वाला
तो यही सही, लेकिन बिना प्रेम समर्पण कैसा?

रजनीश आनंद
13-10-16

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