शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

...क्योंकि मुझे जिद है तुम्हारी हो जाने की

हृदय में उठती है
यह कैसी टीस प्रिय
कि सुनकर नाम तुम्हारा
छलक उठते हैं नयन
मैं खुद भी नहीं समझ पाती
कि चलते-चलते साथ तुम्हारे
ये कहां आ गयी मैं
कहना तो बहुत कुछ चाहता है मन
पर इससे ज्यादा नहीं कह पाता
कि
तुम्हारी हूं मैं
जब तुम कहते हो
बताओ अपना हाल प्रिये
तो चाह होती है
कह दूं वह सबकुछ
जो छिपाकर रखा है तुमसे
कैसे बताऊं कि इंतजार में तुम्हारे
मैंने अपने आंचल में छिपा रखा है
तुम्हारे प्रेम मोती को
इस धवल प्रेम की ज्योति को
मानकर साक्षी मैंने
कर दिया खुद को तुम्हारे हवाले
तुम जो दो, जितना दो
सब स्वीकार्य
लेकिन कभी थामकर
देखना मेरे आंचल को
सिर्फ तुम्हारे प्रेम की खुशबू ही मिलेगी
चाह होती है महसूस कर लूं
तुम्हारे बांहों की गरमाहट को
ताकि घेरे में उसके पिघल जाये
मेरा पृथक अस्तित्व, सिर्फ तुम ही तुम रहो
क्योंकि मुझे जिद है तुम्हारी हो जाने की
रजनीश आनंद
15-10-16

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