जो एक बार कह दो तुम...
तुम और मैं, बनें हम
ना तो सात वचन
ना अग्नि के फेरे
ना साक्षी समाज
ना कोई मंत्रोच्चार
लेकिन है विश्वास
साथ हैं हम.
जब आती है सांस
तन में लेकर तुम्हारा नाम
खिल उठता है मन
अंतस से आती है आवाज
तुम्हारी हूं मैं
सात जन्मों तक
साथ रहे ना रहे
पर इतने का है वादा
जब भरूंगी अंतिम सांस
लेकर तुम्हारा नाम
पास हो या दूर तुम
भींग जायेंगी पलकें तुम्हारी
इतना है प्रेम मेरे मन में
लाख रोकती हूं
रूकता नहीं सैलाब
बहते हैं आंसू मेरे दृग से
बस इतना है प्रेम निवेदन
इंतजार की रात,
चाहे कितनी भी हो लंबी
मेरी आंखें बंद होने से पहले
मस्तक को चूम मेरे
कह देना तुम एक बार
तुम्हारा हूं मैं....
रजनीश आनंद
20-10-16
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें