मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

कैसे बचा पाऊंगी मैं ...

मृत्यु पर शोक
जन्म पर खुशी
यही विधान है
लेकिन उस दिन
उल्टी गंगा क्यों बही?
एक अबोध के आगमन पर
जब  देने गयी बधाई
तो पसरा था सन्नाटा
खुशी की कोई पहचान
नहीं थी उपस्थित वहां
हां हल्की सी सिसकी थी मौजूद
आशंका से घिर गया मन
कोई अनिष्ट तो....
नहीं-नहीं मैंने
खुद को हिम्मत बंधायी
और पहुंची उस माता के सम्मुख
जिसकी गोद में थी
जीवन की नयी आस
मुस्कुराती, इस दुनिया को
उम्मीद से निहारती
मासूम का प्यारा चेहरा देख
पूछ बैठी मैं उसकी मां से
इतना सुंदर वरदान मिला
फिर भी क्यों है
तेरी पलकें भींगी
खुश हो कि तुमने
अद्‌भुत सृजन किया
गर्व करो खुद पर
अब तू सिर्फ औरत नहीं मां है
फफक पड़ी वो मां
कलेजे से बच्ची को लगा
कहा, हां मां हूं
इसलिए पलकें हैं भींगी
क्यों जना मैंने एक लड़की
मिले घर वालों के ताने
कहीं कोई खुशी नहीं
सोचती हूं ज्यों-ज्यों
इसकी उम्र बढ़ेगी, बढ़ेंगी इसकी मुश्किलें
क्योंकर मैं बचा पाऊंगी
अपनी लाडो को
इस दूषित समाज से
क्या इसे भी मिलेंगे
बेटी जनने पर ताने?
रजनीश आनंद
25-10-16

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