शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

...लेकिन निष्ठुर तुम आये नहीं

सोचा था मैंने
जब आयेगा ऋतुराज
खामोश लब और
बोलती आंखों के साथ
हम होंगे साथ
खोये रहेंगे एक दूजे में
बनकर अद्‌भुत प्यास
लेकिन निष्ठुर तुम आये नहीं
जब आया ग्रीष्म
तो जागी उम्मीद
एक तुम ही तो हो
जो दे सकते हो
मेरे तनमन को शीतलता
जिसकी सुरक्षित बांहों में
मैं जी लूंगी आंखों को मींचे
और पूरी हो जायेगी हर चाह
लेकिन निष्ठुर तुम आये नहीं
जब दस्तक दिया पावस ने
और पहली बारिश की बूंद ने
चूमा मुझे, महसूस हुई तुम्हारी छुअन
जागी मिलन की आस
लेकिन निष्ठुर तुम आये नहीं
देखो ना बाट जोहते तुम्हारी
आ गया है शरद भी, इसे तो मैंने
पहले ही कर दी  ताकीद
तुम बाधा ना बनना
कोई ऐसा प्रपंच ना करना
कि
मुझे नसीब ना हो
मेरे प्रिय का साथ
मैंने बांह फैलाकर
प्रेम निवेदन भी किया
लेकिन निष्ठुर तुम आये नहीं
अब तो मात्र हेमंत का ही है सहारा
मैंने नतमस्तक हो की है उससे विनती
देखो तुम तो समझो मेरी पीड़ा
हर ऋतु ने छला मुझे
मैं अपने प्रियतम की दीवानी
तरस रही हूं उसके साथ के लिए
उपहास ना करो मेरा
जो तुम्हें हो किसी से प्रेम
तो कसम है उसकी
ला दो ना मेरे प्रिये को सम्मुख मेरे
जो देख लूं एक बार उसका मुख
कुछ और देखने की चाह ना रहेगी शेष
क्योंकि भरोसा है मुझे वो निष्ठुर नहीं
चांद है मेरा और मैं उसकी चकोर
जिसे चाह है उसके प्रेम की....
रजनीश आनंद
08-10-16

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