गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

प्रेमपाश

वो डोर कौन सी है
जो दिखती तो नहीं
पर महूसस होती है
जिसने बांध रखा है
मुझे तुम्हारे प्रेमपाश में
अद्‌भुत है इसकी जकड़न
दम घुटता नहीं, बल्कि
मन खिल उठता है
सांस रूकती तो है
पर, जब आती है
तो दमक उठता है चेहरा
हां, जानती हूं मैं यह है
तुम्हारे प्रेम की डोर
थामे इस डोर को
जीना चाहती हूं मैं
कांधे पर तुम्हारे
सिर रखकर बुनना
चाहती हूं सपने
जानते हो प्रिये
कहते हैं लोग
अच्छी नहीं होती
‘अति’ किसी भी चीज की
लेकिन मैं कहती हूं
गलत है ये, क्योंकि
तुम्हारे प्रेम की ‘अति’
तो मनमोहक है
जिसने बांध रखा है
मुझे तुमसे हमेशा के लिए
रजनीश आनंद
10-07-16

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