शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

क्योंकि एक उम्मीद काफी है जिंदगी के लिए...

क्या तुम्हारे होने का एहसास मात्र
मुझे जिंदगी को जी लेने के लिए प्रेरित करता है?
यह सवाल मेरे मन में कुलबुला रहा है
बेनूर ना सही, लेकिन नाउम्मीद सी
जरूर हो गयी थी जिंदगी
सुबह भी होती थी, शाम भी और रात भी
लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता
जैसी हो गयी थी मैं
होली भी आयी और दीवाली भी
पकवान भी बने बने और गुलाल भी उड़े
मैं मुस्कुराई भी और नये कपड़े भी पहने
लेकिन मुस्कान के पीछे छिपी
मेरी भींगी पलकों को किसी ने देखा नहीं
ना किसी ने मेरी मुस्कान देख कहा
यूं ही बनाये रखना इसे
ना किसी ने यह कहा
कि नीला रंग तुम पर बहुत फबता है
लेकिन अचानक जीवन के एक मोड़ पर मिले तुम
पता नहीं क्यों और कैसे मैं जुड़ती गयी तुमसे
मेरी जिंदगी में एक उम्मीद बनकर आये तुम
और मैंने ये जाना कि
एक उम्मीद काफी है जिंदगी जीने के लिए
रजनीश आनंद
18-11-16

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