मंगलवार, 22 नवंबर 2016

प्रेम का गुल्लक

ए सुनो ना प्रिये,तुम्हें कुछ बताना है
मैं कुछ दिन पहले बाजार गयी थी
वहां एक मिट्टी के छोटे गुल्लक
पर टिक गयी मेरी नजरें
बिलकुल गोल, ना ओर ना छोर
हमारे प्रेम की भांति.
उसे देखते ही अजीब से आकर्षण हुआ
मैंने लपक लिया उसे ताकि
कोई और ना उठा ले उसे
बड़ा सुकून मिला उसे स्पर्श करके
मैं हर दिन उस गुल्लक में
अपने इंतजार का, तुम्हारे लिए अपने तड़प का
एक-एक सिक्का गिराती हूं
जब वो सिक्का गुल्लक की दीवारों से टकराता है
और फूटती है एक ध्वनि, तो प्रतीत होता है
मानो तुमने सुन ली मेरी बात
कल जब मैंने उसे हाथों में उठाया
तो गुल्लक के अंदर से आयी आवाज
सुनो प्रिये तुम अकेली नहीं तड़प रही
मैं भी तो तुम्हारे लिए तड़पता हूं
यकीन है मुझे जिस दिन यह गुल्लक पूरा भर जायेगा
उस दिन तुम आ जाओगे मेरे सामने और
कहोगे मुझसे आओ इंतजार को अभिसार में बदल दें.

रजनीश आनंद
22-11-16

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