सोमवार, 28 नवंबर 2016

सपने तो मैं देखूंगी...

ये क्या है जो मेरे सीने में
धंस सा गया है
तिल-तिल रिसता है दर्द
मेरे आंखों से अश्रु बनकर
जब भी देखती हूं
नर-मादा जोड़ियों को
घोंसले के लिए बिनते तिनका
होता है अहसास एक अधूरेपन का
बिन घोंसले के होने का
कोशिश तो मैंने भी की थी
तिनका -तिनका बीनकर
नीड़ के निर्माण की
लेकिन बिखर गया सबकुछ
और कहा गया मुझसे नहीं है मुझे
सपने देखने की आजादी
नहीं मिली रोने की भी इजाजत
तो ठहाकों में बदल दिया
मैंने अपने आंसुओं को
और किया निर्णय सपने
तो मैं देखूंगी, सच भी करूंगी.
रजनीश आनंद
28-11-16

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