रविवार, 13 नवंबर 2016

..ओ चांद सुनो

..ओ चांद सुनो,
मेरी एक बात
आज मेरे प्रिये ने
वो सबक कह दिया
जिसे सुनने को मेरे कर्ण
कब से तरस गये थे
उसने आज बताया
अपने प्रेम का रहस्य
उस क्षण लगा जैसे
जड़ हो गयी हूं मैं
परम सुख से हुआ साक्षात्कार
और नम हो गयीं पलकें
अश्रु सिर्फ दुख के नहीं
सुख के भी होते हैं साथी
मैंने कहा उससे थाम लो मुझे
ताकि इस सुख को महसूस कर लूं
जब उसने लिया मुझे
अपनी बांहों के घेरे में
तब मैं, मैं नहीं रही
सिर्फ वो रहा और हमारा प्रेम
उसके प्रेम की वर्षा से अभिभूत
मैं प्रेमलता बन कस गयी उससे
इस कसावट में मेरी आंखें,
अधमुंदी सी हो गयीं और
मैंने कहा, तुम्हारे प्रेम में
टीसता है तनमन
आजीवन बनी रहे यह टीस, यह कसावट
प्रेम इतना दो मुझे कि बेसुध हो जाऊं मैं
और तुम्हारी बांहों में तोड़ दूं
तनमन की हर लाज, हर दीवार
रजनीश आनंद
14-11-16

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