जानते हो प्रिये
जब रसोई में मैं
रोटियों को गोलाई
में विस्तार देती हूं
तो भान होता है
जैसे अपने सपनों को
मूर्त रूप दे रही हूं
और तुम,मुझे
उस तवे की भांति लगते हो
जो मेरे सपनों को साकार करने
के लिए खुद आग की तपिश में
जल रहा है, मेरे सपनों को
स्वादिष्ट रोटी बनाने के लिए
यूं दिन-रात ना जलो प्रिय
कुछ मुझे भी मौका दो जलने का
क्योंकि प्रेम तो हमदोनों ने किया है
और यह सपना हमदोनों का है,है ना?
रजनीश आनंद
25-11-16
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