निर्मल होते हैं
आंखों से बहते आंसू
दोष से रहित
बिलकुल पारदर्शी
हम-आप
साफ देख सकते हैं
इसके आर-पार
क्यों, कब और कैसे
आंखों में घुमड़े
और फिर बरसे आंसू
मैंने तो कई बार
पढ़ा इन्हें,
अद्भुत है
इनकी कहानी
जब हाथों में समेट
आप देखेंगे
इनके आर-पार
बरस सकते हैं
एक बार फिर
ये मोती आंखों से
लेकिन तब भयावह
हो जाती है स्थिति
जब सूख जाते हैं आंसू
और
संवेदना शून्य
आंखें पत्थर की
हो जाती हैं
मुझे नफरत है
पत्थर होती है
आंखों से
इसलिए भाते हैं
निर्मल आंसू...
रजनीश आनंद
03-11-16
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