बुधवार, 23 नवंबर 2016

मैं तुम्हारी और तुम मेरे हो...

बहुत खराब हो तुम
मैं तुमसे तबतक ना बोलूंगी
जबतक तुम ना बोलो मुझसे
यह ठान मैं कर आयी तुमसे किनारा
सोचा, कुछ देर ले लेती हूं मीठी नींद
लेकिन पलकों को चूम जगा गये तुम
जागती आंखों में जो ख्वाब तैरे
उसमें तुम ही तुम थे
सोचा बाहर टहल लेती हूं
दरवाजे को खोला, तो सर्द हवा
टकराई मुझसे, जिसमें गरमाहट थी तुम्हारी
उस गरमाहट को ठुकरा मैं बैठ गयी
कागज काले करने, लेकिन ना जानें क्यों
तुम्हारे नाम के सिवा कुछ लिख ना पायी
खुद से हार कर जो मैंने बंद की आंखें
तो ढलक गये अश्रु, कहा दिल ने
तू किससे ना बोलने की जिद कर बैठी है
जिसके सांस लेने से आती है सांस तुझे
जिसकी उपस्थिति से होता है,
तुझे अपने अस्तित्व का एहसास
जिससे बोलकर है तेरे नयन वाचाल
अन्यथा हो जायेंगे मूक
सुनकर अपने दिल की बात
मैं भागकर समा गयी, तुम्हारी बांहों में
इस मिलन मेंं नयन जो बरसे, तो
मिट गये सारे शिकवे, एक ही बात शेष रही
कि मैं तुम्हारी और तुम मेरे हो...
रजनीश आनंद
23-11-16

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