गुरुवार, 10 नवंबर 2016

...तुम पलाश के फूल

मैं हरी घास की चादर
और तुम पलाश के फूल
जब बिछते हो तुम मुझपर
अनुपम होता है सौंदर्य
हरा और सुर्ख लाल
ऐसे खपते हैं दोनों
एक दूसरे में जैसे चुंबक के दोनों ध्रुव
सोचती हूं किस मोड़ पर आ गयी जिंदगी
कुछ समय पहले तक
अनजान थे बिलकुल हम
लेकिन अब आती है हर
सांस लेकर तुम्हारा नाम
तुम बिन कैसे होंगे दिन-रात
इसकी कल्पना मुझसे नहीं संभव
सुनो तुम प्रिये, ये चाह है मेरी
जब आओ तुम बनकर प्रेममेघ
मैं बन जाऊं तपती धरती
समेट लूं हर बूंद
तुम्हारे प्रेम का
क्योंकि हर बूंद है अनमोल मोती
रजनीश आनंद
10-11-16

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