शनिवार, 5 नवंबर 2016

चंद सिलवटें...

ये किसकी महक है फिजाओं में
जो छूकर मदहोश कर जाती है
एहसास करा जाती है कि
उसके बिना अकेली हूं मैं
निष्प्राण हूं , एक बुत के समान!
तभी कानों में फुसफुसा जाता है कोई
एक सनसनी सी दौड़ जाती है तनबदन में
और रोमानी हो जाता है पूरा वातावरण
बिस्तर पर लेट मैं महसूस करना चाहती
देखना चाहती हूं,उस आवाज को
साकार स्वरूप में, उसके चेहरे का स्पर्श
किंतु हाथ नहीं आता वो
सिर्फ मिलती हैं चादर पर
चंद सिलवटें!!!
जो रोमांचित करती हैं
जिन्हें हाथों से छूकर, मैंने अंकित किया है
मन के उस कोने में जहां है बादशाहत
उस महक की, फुसफुसाहट की...
रजनीश आनंद
05-11-16

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