रविवार, 27 नवंबर 2016

प्रेमवृक्ष

प्रेम में जायज है इंतजार
तबतक,जबतक प्रिये आकर
ना भर ले बांहों में
निसंदेह अधीर होता है मन
अश्रु भी बहते हैं,लेकिन
एकत्र कर आंसुओं को
मैंने सींचा है अपना प्रेमवृक्ष
देखो ना प्रिये ह लहलहा रहा है
कुछ दिन में फूल और फिर फल आयेंगे
फिर कोई चिड़िया आकर
अपना नीड़ बना जायेगी
इसे बूढ़ा बरगद होते देखना है हमें
और हां जब तुम आओगे ना
तो अपने प्रेम की वर्षा कर
भींगा जाना इसे ताकि
अमर हो जाये यह प्रेमवृक्ष
रजनीश आनंद
27-11-16

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